डीएनबी भारत डेस्क
गणतंत्र दिवस के पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्वारा देश के सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री की घोषणा की गयी। यह पुरस्कार पाने वालों में नालंदा की एक हस्ती का भी नाम जुड़ा है। कल तक गुमनामी की जिंदगी जी रहे कपिलदेव प्रसाद अचानक चर्चा में आ गये है। लगभग 70 साल की उम्र में टेक्सटाइल के क्षेत्र में इन्हें पद्मश्री सम्मान देने की घोषणा की गयी। पद्मश्री सम्मान के घोषणा के बाद कपिलदेव प्रसाद ने कहा कि यह सम्मान पाकर वह काफी अभिभूत है। यह सम्मान सिर्फ उनका नहीं बल्कि हर उन लोगों का है जो हस्तकरघा से जुड़े हुए है।
उन्होंने कहा कि इस सम्मान के साथ नालंदा की पहचान जुड़ी है। कपिलदेव प्रसाद का जन्म 1954 में हुआ है। उनकी खानदानी पेशा रही है हस्तकरघा। वे बताते है कि उनके दादा भी हस्तकरघा के जरिये बावन बूटी साड़ी बनाते थे और बाद में पिता ने भी यही धंधा अपनाया था। पिछले लगभग 60 वर्षों से वे लगातार हस्तकरघा से जुड़े रहे और अब इस कार्य में उनका एकलौता पुत्र भी हस्तकरघा के कार्यों में हाथ बंटाते है। नालंदा जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से तीन किलोमीटर पूरब उत्तर स्थित एक छोटा सा टोला जिसका नाम है बासवन बिगहा। इसी गांव से आते है कपिलदेव प्रसाद जिन्होंने बावन बूटी साड़ी के लिए जीआई टैग प्राप्त करने हेतु आवेदन भी दिया है। वे कहते है कि बावन बूटी साड़ी के जीआई टैगिंग मिलने से इसकी पहचान नालंदा से जुड़ेगी। हस्तकला की बावन बूटी साड़ी का इतिहास बौद्धकाल से जुड़ा रहा है। तसर और कॉटन के कपड़ों को हाथ से तैयार कर इसमें बावन बूटी की डिजाइन की जाती है। यह बावन बूटी बौद्ध धर्म से जुड़ा है। कहा तो यह भी जाता है कि बावन बूटी साड़ी में बौद्ध धर्म की कला को उकेरा जाता है।
बताते चले कि कपिलदेव प्रसाद जिले के इकलौते हस्ती है जिन्हें पद्मश्री सम्मान देने की घोषणा की गई। हालांकि पिछले साल वीरायतन राजगीर की आचार्य चंदना श्री जी को पद्मश्री अवार्ड मिला था जिनका कार्यक्षेत्र नालंदा जरूर रहा है लेकिन वे नालंदा की रहने वाली नहीं है।
नालंदा से ऋषिकेश