गांव के बच्चे नहीं आते थे स्कूल, ग्रामीणों को किया जागरूक तो शत-प्रतिशत बच्चे आने लगे स्कूल

विपरित परिस्थितियों में अपने प्रयास से स्कूल को बनाया दूसरों के लिए नज़ीर

डीएनबी भारत डेस्क
कौन कहता है आस्मां मेंं सूराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो जरा तबीयत से उछालो यारो। एक पत्थर की भी तकदीर संवर सकती है, शर्त यह है कि सलीके से तराशा जाए। इसे चरितार्थ कर दिखाया है जिले से 40 किलोमीटर दूर खोदावंदपुर प्रखंड के दौलतपुर गांव स्थित उत्क्रमित मध्य विद्यलाय दौलतपुर नवटोलिया के प्रभारी प्रधानाध्यापक मो. अब्दुल्लाह ने।

एचएम के निजी प्रयास से इस विद्यालय में आज पहली पीढ़ी के बच्चे अपने कल सवांरने में लगे हैं। जिस गांव के बच्चे स्कूल नही आते थे वहां आज शत-प्रतिशत बच्चे रोज पढ़ने स्कूल आते हैं। ऐसे बच्चों के भविष्य निर्माण में स्कूल के एचएम मो. अब्दुल्लाह द्रोणाचार्य और चाणक्य दोनों की भूमिका निभा रहे हैं। अपने अनूठे प्रयोग और कर्तव्यनिष्ठता के बदौलत मो. अब्दुल्ला ना सिर्फ गांव के लोगों के चहेते हैं, शिक्षा विभाग ने भी उनकी कर्तव्यनिष्ठता को देखते हुए विभाग ने शिक्षक सम्मान से सम्मानित भी किया है।

इस विद्यालय के बच्चे कम्प्यूटर व स्मार्ट क्लास के माध्यम से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। नवाचार अपना कर बेहतर पढ़ाई का प्रयास जारी है। वह विद्यालय में किये जाने वाले कार्य को सेवा भाव से नहीं बल्कि जुनून की तरह करते हैं। कर्तव्य के प्रति समर्पण और सेवा भाव इनके जीवन में है। शिक्षा दान इनके लिए एक जुनून के समान है।

एचएम ने बताया कि यह इलाका काफी पिछड़ा है। आज से 15 साल पहले इस गांव में पढ़ाई का कोई कल्चर ही नहीं था। इसलिए बच्चे पढ़ने नहीं आते थे। लोगों को समझाने में काफी समय लग गया तब जाकर लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू किए हैं। आज का परिदृश्य अलग है अब स्कूल में 99 प्रतिशत तक बच्चों की उपस्थिति होती है। जिस बच्चे को कलम पकड़ना नहीं आता था, वो बच्चे अब कम्प्यूटर आसानी से चला लेते हैं। एचएम ने बताया कि कोई भी व्यक्ति समय के सांचों के साथ ढलकर कामयाब बनता है। लेकिन उसे एक बेहतर इंसान बनाने में परिजन सहित गुरू की भूमिका अहम होती है।

82 के उम्र में भी है शिक्षा का जुनून
पड़ोस के गांव के बच्चों को देते हैं मुफ्त में शिक्षा जी हां, हम बात करते हैं खुदाबनपुर प्रखंड के मेघौल निवासी 82 वर्षीय अवकाश प्राप्त शिक्षक, लेखक पूर्व पत्रकार ,उद्घोषक और समाज सेवी याने बहुआयामी प्रतिभा के धनी, चंद्रशेखर चौधरी का। जिनमें शिक्षा के प्रति लगाव और जुनून इस कदर है की उम्र के इस पराव पर भी जब लोग धर्म कर्म और पूजा पाठ में अपने को तल्लीन कर लेते हैं। चौधरी सर ने शिक्षा के अलख को जगाए रखना ही अपनी पूजा और अर्चना माना है।

जो इनके में शिक्षा के प्रति जुनून को दर्शाता है। आज भी यह अपने मेघौल स्थित आवास पर बच्चों को सामाजिक विज्ञान और जनरल नॉलेज की शिक्षा के साथ-साथ जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं। खासियत यह है कि यह इसके लिए किसी से कोई शुल्क नहीं वसूलते। मुफ्त में शिक्षा दान करते हैं। इनका एक सामाजिक सम्मान है। श्री दुर्गा प्लस टू उच्च विद्यालय मेघौल से अवकाश प्राप्त शिक्षक इतिहासकार चंद्रशेखर चौधरी अपने शिक्षकीयजीवन में मेघौल के अलावे समस्तीपुर जिला के हसनपुर प्रखंड अंतर्गत उच्च विद्यालय पटसा में प्रधानाध्यापक के पद पर तथा बेगूसराय सदर प्रखंड के नीमा चांदपुरा उच्च विद्यालय में सहायक शिक्षक के पद तथा चेरिया बरियारपुर प्रखंड के रीतलाल उच्च विद्यालय सकरौली में सहायक शिक्षक के पद पर योगदान देते हुए पुनः श्री दुर्गा प्लस टू उच्च विद्यालय मेघौल से अवकाश ग्रहण किया। तब से अब तक निरंतर शिक्षा के प्रति इनका समर्पण लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

चौधरी जी तीन-तीन पीढियां को शिक्षित कर चुके हैं। इसको लेकर लोगों में उनके प्रति एक श्रद्धा का भाव समाज के लोगों को है । आज भी उम्र के अंतिम पराव पर भी शिक्षा का अलख जाग रहे हैं। चंद्रशेखर चौधरी अवकाश प्राप्त शिक्षक।

जब दिल में सेवा भाव हो तो अभाव मायने नहीं रखता।

जब दिल में सेवा भाव हो तो अभाव मायने नहीं रखता। इसको सिद्ध कर दिखाया है, मेघौल निवासी युवा शिक्षक ओम शंकर कुमार ने। ओम शंकर वर्तमान में खोदाबंदपुर प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय मटिहानी कन्या में शिक्षक हैं । यह एक योग्य शिक्षक के रूप में जाने जाते हैं। कर्तव्य के प्रति समर्पण और सेवा भाव इनके जीवन में है ।शिक्षा दान इनके लिए एक जुनून के समान है। इसी जुनून के तहत वह विद्यालय में तो बच्चों को ईमानदारी पूर्वक शिक्षित करते ही है विद्यालय के बाद के समय में इनका निजी कोचिंग संस्थान है।

जिस संस्थान के माध्यम से यह समाज के दवे ,कुचले सोषित वंचित परिवार के बच्चों को कम शुल्क लेकर शिक्षा देते हैं ओम कर न सिर्फ कम शुल्क पर शिक्षा दान करते हैं बल्कि समाज के वैसे लोग जो अर्थाभाव से जूझ रहे हैं, निर्धन है, मेधावी है ,दिव्यांग है, विधवा है, सैनिक संतान है, ऐसे बच्चों को निशुल्क शिक्षा देते हैं। न सिर्फ शिक्षा देते हैं, बल्कि उनके लिए शिक्षण सामग्री और कपड़ों का भी बंदोबस्त निजी कोष से करते हैं। इसीलिए ओम सर को शिक्षा के मंदिर का एक सफल पुजारी माना जाता है । उनके संस्थान से करीब 400 बच्चे बिहार पुलिस पॉलिटेक्निक नियम ए एन एम बीपीएससी शिक्षक पुलिस की नौकरी में जा चुके हैं। समाज में इनका एक अलग रुतबा और सम्मान है। शिक्षा के ऐसे दूत को समाज सैल्यूट करता है।

ओम शंकर कुमार,शिक्षक

कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं होता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो। इस बात को प्रमाणित कर दिखाई है खुदाबांदपुर की बेटी रेखा ने। जी हां हम बात करते हैं थाना क्षेत्र के बरियारपुर पश्चिमी वार्ड चार निवासी अरुण कुमार की पत्नी रेखा कुमारी का , जिन्हें लोग रेखा मैडम के नाम से भी पुकारते हैं । रेखा मैडम एक निजी स्कूल की शिक्षिका हैं। जो शिक्षा के प्रति सेवा भाव से समर्पित हैं। नारी सशक्तिकरण के तहत बेटियों के बीच शिक्षा का अलख जगाना इनका जुनून है। 32 वर्षीय रेखा एक साधारण परिवार से आती हैं जो खुद भी पढ़ती है और बच्चों को भी पढ़ाती है।

रेखा मैडम प्रतियोगी परीक्षाओं के साथ-साथ शिक्षक, पुलिस जीएन एम पॉलिटेक्निक इत्यादि परीक्षाओं की तैयारी भी कराती है। एक सफल कोच मानी जाती है। इनका इलाके में एक सम्मान और श्रद्धा भाव है। लोग इन्हें प्यार से रेखा मैडम कह कर पुकारते हैं झुकी झोपड़िया में पल भर रहे बच्चों में शिक्षा का अलख जगाना इनका जुनून है। समाज के और लोगों को भी शोषित वंचितों के बीच शिक्षा का दान शिक्षा का प्रचार प्रसार करने के लिए रखा मैडम रहती है

बेगूसराय खोदावंदपुर संवाददाता नितेश कुमार की रिपोर्ट