मंसूरचक में दुर्गा पूजा की तैयारी अंतिम चरण में, 1946 से स्थापित की जाती है मां दुर्गा की प्रतिमा

शारदीय नवरात्र के पूजन के सिलसिले में विभिन्न पूजा समितियां मेले के आयोजन को अंतिम रूप देने में लगी है। 1946 में स्थापित की गई थी मंसूरचक में मां दूर्गा की प्रतिमा

शारदीय नवरात्र के पूजन के सिलसिले में विभिन्न पूजा समितियां मेले के आयोजन को अंतिम रूप देने में लगी है। 1946 में स्थापित की गई थी मंसूरचक में मां दूर्गा की प्रतिमा

डीएनबी भारत डेस्क 

बेगूसराय के मंसूरचक में बड़े ही धूमधाम से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है। यहां दशहरा के अवसर पर भारी भीड़ भी जुटती है। कहा जाता है कि यहां सबसे पहले वर्ष 1946 में कपड़े से घेर कर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की गई थी। मंदिर के लिए भूमि गणपतौल निवासी बाबू नंदी प्रसाद की पत्नी देवासरी कुमारी ने दान किया था। मंदिर के निर्माण के लिए रामराजी सिंह, रामखेलावन झा, युगेश्वर सिंह ने ग्रामीणों के सहयोग से नींव रखा गया था। आदर्श दुर्गा पूजा मंदिर से कलश स्थापन के समय से ही मंदिर में पूजा अर्चना जोर शोर से आरंभ हो जाता है। सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद होती है पूरी पूरी होने पर भक्त खोईछा चढ़ाते हैं।

नवरात्रा के दौरान अष्टमी से लेकर 10वीं तक यहां भारी भीड़ जुटती है। इलाके के हजारों भक्त पूजा-अर्चना के लिए यहां पहुंचते हैं। मंदिर के पुजारी विनोद कुमार झा उर्फ बिजली झा और देवानंद झा ने बताया कि यहां के भगवती की महिमा अपरंपार है। जो लोग सच्चे मन से माता भगवती से कामना करता है उनकी हर मुरादें मैया पूरी करती हैं। नवमी के दिन भव्य पूजा अर्चना किया जाता है और ब्राह्मण भोजन और कन्या पूजन को लेकर भी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

पूजा की महत्ता पर दिया जाता है विशेष जोर
आदर्श दुर्गा पूजा समिति द्वारा नवरात्रा में पूजा की महत्ता पर विशेष जोर दिया जाता है। समिति के अध्यक्ष विनोद कुमार झा ने बताया कि हम लोगों का मूल पूजा 10 दिनों तक चलने वाली माता भगवती की पूजा पर रहता है। सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत रामायण गोष्ठी का आयोजन किया जाता रहा है।

भव्य और जीवंत प्रतिमा का होता है निर्माण
समसा गांव स्थित आदर्श दुर्गा पूजा समिति मंदिर में प्रतिवर्ष भव्य प्रतिमा का निर्माण कराया जाता है। जिस प्रतिमा को देखकर जीवंत प्रतिमा के रूप में भी मानते हैं। लोगों का कहना है यहां का प्रतिमा देखकर लगता है जैसे प्रतिमा में जीवन प्रदान किया गया हो। मंसूरचक के मूर्तिकार लाल जी पंडित का प्रतिमा निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान होता है।

मंसूरचक, बेगूसराय से आशीष भूषण

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