डीएनबी भारत डेस्क
बिहार में भारी राजनीतिक उथलपुथल के बीच जातीय जनगणना शुरू हुई और फिर मामला कोर्ट में जाने के बाद जातीय जनगणना शुरू होने के कुछ दिन बाद रोक दी गई। हालांकि जातीय जनगणना रुक जाने के बाद भी इसके समर्थन में रहने वाले लोगों में एक उम्मीद बनी हुई है कि कोर्ट से यह शुरू करने की एक बार फिर से आदेश आएगा। मामले में कल यानि मंगलवार को पटना हाई कोर्ट का अंतिम फैसला आएगा। मामले में 3 जुलाई को शुरू हुई सुनवाई लगातार 5 दिनों तक चली थी जिसका फैसला चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने सुरक्षित रख लिया था जो कि कल सामने आयेगा।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट में बताया था कि राज्य सरकार राज्य में जातियों का जातीय और आर्थिक सर्वेक्षण करवा रही है जो कि संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है। उन्होनें बताया कि ये संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है। साथ ही उन्होंने कहा कि प्रावधानों के तहत इस तरह का सर्वेक्षण केंद्र सरकार करा सकती है। ये केंद्र सरकार की शक्ति के अंतर्गत आता है। इसके जवाब में राज्य सरकार के महाधिवक्ता पी के शाही ने कोर्ट को बताया कि ये सर्वे है, जिसका उद्देश्य आम नागरिकों के सम्बन्ध आंकड़ा एकत्रित करना, जिसका उपयोग उनके कल्याण और हितों के किया जाना है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि जाति सम्बन्धी सूचना शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश या नौकरियों लेने के समय भी दी जाती है। एडवोकेट जनरल शाही ने कहा कि जातियाँ समाज का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि हर धर्म में अलग अलग जातियाँ होती है।
बताते चलें कि जातीय जनगणना के विरोध में कोर्ट में दायर याचिका के बाद हाई कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी। साथ ही हाई कोर्ट ने जानना चाहा था कि जातियों के आधार पर गणना व आर्थिक सर्वेक्षण कराना क्या कानूनी बाध्यता है, ये अधिकार राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में है या नहीं। साथ ही क्या इससे निजता का उल्लंघन होगा।