केंद्रीय संचार ब्यूरो भागलपुर द्वारा टीएनबी विधि महाविद्यालय भागलपुर में तीन नए आपराधिक कानूनों पर परिचर्चा आयोजित
डीएनबी भारत डेस्क
केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित तथा 1 जुलाई 2024 से लागू किए गए तीन नए आपराधिक कानूनों के बारे में जागरूकता के प्रचार- प्रसार के लिए केंद्रीय संचार ब्यूरो, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भागलपुर इकाई द्वारा टीएनबी विधि महाविद्यालय भागलपुर में एक विशेष परिचर्चा का आयोजन किया गया।
परिचर्चा का उद्घाटन टीएनबी विधि महाविद्यालय भागलपुर के प्राचार्य डॉ संजीव कुमार सिन्हा द्वारा किया गया। केंद्रीय संचार ब्यूरो के क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी अभिषेक कुमार ने विषय प्रवेश करते हुए कहा कि इन नए कानूनों के माध्यम से भारत सरकार द्वारा न्याय व्यवस्था को और अधिक गतिशील बनाया जा रहा है।
इस अवसर पर उपस्थित छात्रों और शोधार्थियों को संबोधित करते हुए प्राचार्य डॉ संजीव कुमार सिन्हा ने कहा कि प्राचीन काल से ही भारत में न्याय व्यवस्था रही है जिसे ब्रिटिश काल में दंड संहिता का रूप देकर संहिताबद्ध किया गया था। अब सरकार द्वारा न्याय व्यवस्था को मानव केन्द्रित तथा न्याय केंद्रीय बनाने की दिशा में कदम उठाते हुए संशोधन किया गया है, जिसके फलस्वरूप भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम अस्तित्व में आया है। इन कानूनों द्वारा पुराने कानूनों का स्थान लिया गया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अब कानून का लक्ष्य न्याय प्रदान करना है।
परिचर्चा में वक्ता के रूप में भाग लेते हुए असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सुनीता कुमारी ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों को विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि साक्ष्य के बिना न्याय प्रदान करना संभव नहीं है। ब्रिटिश काल में जेम्स स्टीफन द्वारा साक्ष्य अधिनियम को संहिताबद्ध किया गया था, जिसमें आज के समय की आवश्यकतानुसार संशोधन करते हुए भारतीय साक्ष्य अधिनियम का निर्माण किया गया है। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि तकनीकी युग होने के कारण इलेक्ट्रॉनिक व तकनीकी माध्यम के साक्ष्य भी अब मान्य होंगें।
वक्ता के रूप में उपस्थित असिस्टेंट प्रोफेसर बिन्नी कुमारी ने भी साक्ष्य अधिनियम के विभिन्न खंडों एवं उपखंडों पर प्रकाश डाला। असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ बबिता कुमारी द्वारा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के प्रमुख अध्यायों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई। वक्ता के रूप में उपस्थित असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अमित कुमार अकेला ने भारतीय दंड संहिता के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता के लागू किए जाने को न्याय प्रक्रिया का भारतीयकरण बताया। उन्होंने विस्तार से चर्चा करते हुए इसके माध्यम से लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने की बात की।
पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता एवं विधि शोधार्थी प्रवीण कुमार ने तीनों नए कानूनों की पृष्ठभूमि और निर्माण प्रक्रिया की चर्चा की। इस अवसर पर बड़ी संख्या में महविद्यालय के छात्र – छात्राएं, शोधार्थी, अधिकवक्ता एवं आम नागरिक भी उपस्थित थे। परिचर्चा के आयोजन में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी राजा आलम व प्रभात कुमार का प्रमुख योगदान रहा।