भाई बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक का त्यौहार है सामा-चकेवा पर्व, मिथिलांचल में उत्साह के साथ इस त्यौहार को मनाते हैं लोग

डीएनबी भारत डेस्क

खोदावंदपुर प्रखंड में लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा के समापन होने के साथ ही आठ नवम्बर से मिथिला का प्रसिद्ध लोक पर्व सामा-चकेवा शुरू हो गया। कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक चलने वाली इस लोक पर्व के दौरान महिलाएं सामा चकेवा की मूर्तियों के साथ सामूहिक रुप से गीत गाती है। भाई-बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाये जाने वाले इस लोक पर्व को लेकर बरियारपुर पश्चिमी, बरियारपुर पूर्वी, चकवा, मसुराज, तेतराही, बाड़ा, मिर्जापुर, तारा, दौलतपुर, योगीडिह, चलकी सहित अन्य गांवों में उत्सवी का माहौल है.

खोदावन्दपुर प्रखंड क्षेत्र के बरियारपुर पश्चिमी, बाड़ा एवं पथराहा गांव स्थित कुम्हार समाज के लोगों ने सामा चकेवा की मूर्तियां बनाकर बाजार व ग्रामीणों क्षेत्र में बेचते हैं। गत आठ व नौ नवम्बर को सामा-चकेवा की मूर्तियां को खरीदने के लिए दिनभर महिलाओं और लड़कियों की भीड़ बाजार में देखी गयी. सामा-चकेवा की मूर्तियां बाजार में 40 से 175 रुपये तक खरीददारी हुयी। सामा भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री और सांब पुत्र थे। सामा को घूमने में मन लगता था, इसलिए वह अपनी दासी दिहुली के साथ वृंदावन में जाकर ऋषियों के साथ खेलती थी.

यह बात दासी को रास नहीं आयी, उसने सामा के पिता से इसकी शिकायत कर दी. आक्रोश में आकर कृष्ण ने उसे पक्षी होने का श्राप दे दिया। इसके बाद सामा पक्षी का रूप धर वृंदावन में रहने लगा, इसी वियोग में ऋषि-मुनि भी पक्षी बनकर उसी जंगल में विचरण करने लगे। कालांतर में सामा के भाई सांब अपनी बहन की खोज की तो पता चला कि निर्दोष बहन पर पिता के श्राप का साया है। उसके बाद उसने अपने पिता की तपस्या शुरु कर दी।भगवान श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर नौ दिनों के लिए उसके पास आने का वरदान दिया। सामा चकेवा के गीतों से मिथिलांचल के इस क्षेत्र में उत्सवी का माहौल देखा जा रहा है।

बेगूसराय खोदावंदपुर संवाददाता नितेश कुमार की रिपोर्ट