बाल रंगमंच आर्ट एण्ड कल्चरल सोसाइटी द्वारा आयोजित 35 दिवसीय नाट्य कार्यशाला का हुआ समापन

नाट्य कार्यशाला  के समापन पर श्याम कुमार सहनी द्वारा लिखित “अमर शहीद जुब्बा भाई”  प्रस्तुति की गई

डीएनबी भारत डेस्क

बाल रंगमंच आर्ट एण्ड कल्चरल सोसाइटी द्वारा आयोजित 35 दिवसीय नाट्य कार्यशाला का समापन बुधवार की शाम हो गया। नाट्य कार्यशाला  के समापन पर श्याम कुमार सहनी द्वारा लिखित “अमर शहीद जुब्बा भाई”  प्रस्तुति की गई। निर्देशन श्याम कुमार सहनी व ऋषिकेश कुमार ने की । नाट्य प्रस्तुति के पूर्व ऋषिकेश कुमार ने बताया कि नाट्य कार्यशाला में सीख रहे बच्चों को स्वतंत्रता आंदोलन के गुमनाम सितारे को आम दर्शकों को परिचय करवाना है। आज की प्रस्तुति प्रशिक्षण के हिसाब से रंगमंच से जुड़े कलाकारों के लिए हैं।

कुछ दिनों में आम दर्शकों तक प्रस्तुति के लेकर आएंगे।अमर शहीद जब्बा भाई नाट्य प्रस्तुति में मुख्य भूमिका में  जुब्बा सहनी– राजेश कुमार , बड़ा भाई(बांगुर)–विजेंद्र कुमार लुइस वालर(अंग्रेज सुपरवाइजर)– ऋषि कुमार , बंगाली सुपरवाइजर राज लक्ष्मी , दादी मां –पूर्णिमा कुमारी, बच्चा –आयुष कुमार सुखन काका –सौरव कुमार ने अभिनय किया। प्रकाश परिकल्पना रवि वर्मा , सहयोग सुजीत कुमार , कुणाल कुमार, आँचल कुमारी , साक्षी कुमारी, रोहित कुमार ने किया। नाटक का मूल कहानी अमर शहीद जुब्बा सहनी lआजादी की लड़ाई के ऐसे साहसी नायक, जिनकी जांबाजी के किस्से सुनकर तन मन रोमांचित हो उठता है।

जुब्बा सहनी जिनका नाम बिहार के अग्रगण्य स्चतंत्रता सेनानियों में शुमार है। जुब्बा साहनी का जन्म 1906 में बिहार के मुजफ्फरपुर जिला के मीनापुर थाने के अंतर्गत चैनपुर बस्ती के अत्यंत निर्धन परिवार में हुआ था। निर्धनता के बावजूद बचपन से अत्यंत साहसी और स्वाभिमानी जुब्बा सहनी ने युवावस्था में ही भीखनपुर चीनी मील के एग्रीकल्चर फार्म में अपने ऊपर हाथ उठाने वाले अंग्रेज सुपरवाइजर की पिटाई कर दी थी l और आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। कई बार जेल भी जाना पड़ा था l

अंग्रेजो के बर्बता में अपनी पसलियां तुड़वाई  l देश में करो या मरो का जज्बा था। lभारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जुब्बा साहनी ने 16अगस्त 1942 को मीनापुर थाने के अंग्रेज इंचार्ज लियो वालर को आग में जिंदा झोंक दिया था। जब उनके साथियों को पकड़ लिया गया था तो उन्होने सबकी जान बचाने के लिए आत्मसमर्पण कर दिया l “वालर को मैंने मारा है… और किसी ने नहीं। ये सभी लोग निर्दोष हैं। फांसी मुझे दी जाए और हंसते-हंसते 11मार्च 1944 को फांसी पर चढ़ गए।

बेगूसराय बीहट संवाददाता धरमवीर कुमार की रिपोर्ट