26 अगस्त को गृहस्थ एवं 27 अगस्त को वैष्णव सन्यासी कृष्णजन्माष्टमी व्रत पूजा अर्चना
26 अअगस्त को गृहस्थ एवं 27 अगस्त को वैष्णव सन्यासी कृष्णजन्माष्टमी व्रत पूजा अर्चना
डीएनबी भारत डेस्क
सनातन संस्कृति में पुनर्जन्म एवं अवतारों की विशेष परिकल्पना है। सामान्य मनुष्य के मृत्यु पर्यंत जन्म लेने की प्रक्रिया पुनर्जन्म कहा गया है एवं जब भगवान इस पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में जन्म लेते हैं तो उसे अवतार की संज्ञा दी जाती है।सनातन संस्कृति के धर्मशास्त्र केवल विभिन्न पुराणों में भगवान विष्णु के 10 अलग-अलग अवतारों की कथा प्राप्त होती है।
ऐसे ही द्वापर युग की एक कथा का वर्णन श्री भागवत महापुराण में प्राप्त होता है जिसमें कंस के अत्याचार से मुक्ति के लिए भगवान विष्णु ने कृष्ण का अवतार लिया था और उसे दिन से भगवान विष्णु के अवतार को जन्माष्टमी व्रत उत्सव जयंती आदि के रूप में लोग मनाते आ रहे हैं।
ज्योतिषाचार्य अविनाश शास्त्री कहते हैं कि भगवान श्रीहरि विष्णु का जब कृष्ण रूप में इस पृथ्वी पर अवतार हुआ था तब चंद्रमास के अनुसार भाद्रपद माह कृष्ण पक्ष और अष्टमी तिथि बीत रही थी एवं अर्ध रात्रि के समय रोहिणी नक्षत्र बीत रहा था और तब से परम्परागत और शास्त्रिक रूप से भाद्रपद मास से अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी मनाया जाने लगा।
क्यो होता है दो दिन का जन्माष्टमी
ज्योतिषाचार्य अविनाश शास्त्री कहते है दो प्रकार के वैष्णव व विष्णु उपासक होते है।एक वो गृहस्थ है दूसरे वो जो साधु सन्यासी है इन दोनों के लिए अलग अलग व्रत का निर्णय शास्त्रों में दिया गया है। पहले दिन का व्रत गृहस्थों के लिए एवं दूसरे दिन का व्रत सन्यासीयो के लिए होता है।इसका कारण यह है कि गृहस्थों को पता था कि देवकी के गर्भ से भगवान का जन्म होने वाला है।
तो जिस रात्रि में जन्म हुआ उस दिन मथुरा वासी व्रत में थे और जब रात्रि काल भगवान का जन्म हो गया तो कंस के भय से जंगलों में छिपे साधु सन्यासियों को दूसरे दिन पता चला कि भगवान ने कृष्ण के रूप में रात्रि काल में ले चुके है तो साधु सन्यासियों ने व्रत रखा इसलिए गृहस्थ एक दिन पूर्ब और सन्यासी दूसरे दिन व्रत रखते है।
कब है अष्टमी और रोहणी नक्षत्र
दिनांक 26 अगस्त 2024 को दिन के 8:28 के बाद अष्टमी तिथि का प्रवेश होगा जो की 27 अगस्त को प्रातः 6:41 में समाप्त होगा एवं रोहिणी नक्षत्र 26 अगस्त सोमवार को रात्रि 9:19 में प्रवेश करेगा एवं 27 अगस्त को रात्रि 8:30 तक रहेगा अर्थात 26 अगस्त 2024 सोमवार को अर्धरात्रि काल अष्टमी तिथि एवं रोहिणी नक्षत्र दोनों का एक साथ संयोग लग रहा है।
परंतु दूसरे दिन अर्थात 27 अगस्त 2024 मंगलवार को अर्धरात्रि कल में नवमी तिथि एवं मृगशिरा नक्षत्र बीतेगा इसलिए 26 अगस्त 2024 सोमवार को कृष्णाष्टमी व्रत एवं अर्धरात्रि कल में शक्ति पूजन शास्त्र सम्मत होगा।
क्या कहते है पंचांग
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय पंचांग के अनुसार निशीथ व्यापिनी अर्थात अर्धरात्रि कल में अष्टमी तिथि का गण हो तो जयंती व्रत कथा उदयकालिक अष्टमी जिस दिन हो उसे दिन कृष्णाष्टमी व्रत करना चाहिए। मिथिला देश के अपराजिता पंचांग के अनुसार 26 अगस्त 2024 को श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत गृहस्थों के लिए तथा 27 अगस्त 2024 को श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत वैष्णव सन्यासी के लिए कहा गया है।