17 को नहीं बल्कि 18 सितंबर को होगा इस वर्ष भगवान विश्वकर्मा की पूजा आराधना- आचार्य अविनाश शास्त्री

तीज एवं चतुर्थीचंद्र पूजन चौरचन्दा पर्व भी 18 सितंबर को ही, ईसाई कैलेंडर शुरू होने के वर्षों पहले वेदों में वर्णन है भगवान विश्वकर्मा के जन्म अवतार का, ईसाई कैलेंडर की तारीख का कोई संबंध नहीं है विश्वकर्मा पूजा से बल्कि कन्या राशि की संक्रांति पर होती है भगवान विश्वकर्मा की प

तीज एवं चतुर्थीचंद्र पूजन चौरचन्दा पर्व भी 18 सितंबर को ही, ईसाई कैलेंडर शुरू होने के वर्षों पहले वेदों में वर्णन है भगवान विश्वकर्मा के जन्म अवतार का, ईसाई कैलेंडर की तारीख का कोई संबंध नहीं है विश्वकर्मा पूजा से बल्कि कन्या राशि की संक्रांति पर होती है भगवान विश्वकर्मा की पूजा।

डीएनबी भारत डेस्क

वर्षों से संक्रांति तिथि एवं अंग्रेजी तारीख के एक दिन होने के कारण 17 सितंबर को ही भगवान विश्वकर्मा की पूजा होती थी परन्तु इस वर्ष यह संयोग नहीं है। विभिन्न पंचांग में इस वर्ष 18 सितंबर 2023 को भगवान विश्वकर्मा की पूजा का वर्णन है। जिसे लेकर आम लोगों के बीच काफी असंमजस की स्थिति बनी हुई है। एक तरफ जहां पंडितों एवं पंचांगों का निर्णय 18 सितंबर को है तो दूसरी ओर आमलोग इसे परंपरागत रूप से 17 सितंबर को ही विश्वकर्मा पूजा करने की बात कह रहे हैं।

इस संदर्भ में ज्योतिषाचार्य आचार्य अविनाश शास्त्री ने बताया कि यह ग्रह की गति का यह प्रतिफल है। इसमें किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं करना चाहिए कि भगवान विश्वकर्मा की आराधना 18 सितंबर को होगी। आचार्य शास्त्री कहते हैं कि सनातन परंपरा में अलग अलग कार्य एवं विषयों के लिए अलग-अलग देवी देवताओं की आराधना करने का विधान है जैसे कि विद्या के लिए देवी सरस्वती, धन धान्य की समृद्धि के लिए लक्ष्मी और शक्ति के लिए दुर्गा की उपासना श्रद्धालु करते हैं।

इस तरह कल कारखाना, औजार एवं यांत्रिक क्षेत्रो से जुड़े लोग भगवान विश्वकर्मा की आराधना करते हैं। इस पूजा आराधना परम्परा से ईसाई संप्रदाय का कोई दूर-दूर तक लेना देना नहीं है। ईसाइयों के कैलेंडर का निर्माण तो 2023 वर्ष पूर्व हुआ एवं हमारे देश में अंग्रेजों के आने के बाद इस कैलेंडर का चलन बढ़ा लेकिन भगवान विश्वकर्मा की आराधना तो सैकड़ो वर्षों से होती आ रही है। इसी कैलेंडर के निर्माण से पूर्व हमारे सनातन परंपरा में ऋग्वेद की रचना हो चुकी थी। जिस ऋग्वेद के दशम मंडल में विश्वकर्मा सूक्त का वर्णन है अतः यह प्रमाणित होता है कि ईसाइयों के कैलेंडर से वर्षों पहले भगवान विश्वकर्मा की पूजा आराधना होती रही है।

कब होता है विश्वकर्मा पूजा

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आचार्य अविनाश शास्त्री बताते हैं कि चंद्रमा को 12 राशि के भ्रमण करने में 30 दिन लगता है ढ़ाई दिन एक राशि में चंद्रमा गमन करते हैं। इस प्रकार 12 राशियों के परिक्रमा पूर्ण होने की अवधि को हम चंद्रमास कहते हैं और इस चंद्रमा की अंतिम तिथि पूर्णमासी कही जाती है। ठीक उसी प्रकार सौर मास का भी विधान है सूर्य की गति प्रत्येक दिन एक-एक अंश की होती है। जब 30 अंश पूरा होने पर एक राशि से दूसरे राशि पर सूर्य जाते हैं और वह एक राशि से दूसरे राशि में परिवर्तन की तिथि ही संक्रांति कही जाती है और यह सौर मांस कहलाता है।

मकर राशि में सूर्य के प्रवेश पर मकर संक्रांति या तिला संक्रांति पर्व मनाया जाता है उसी प्रकार कन्या राशि में सूर्य के प्रवेश होने पर विश्वकर्मा पूजन मनाये जाने का प्रावधान है। यह सत्य है कि 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा होता था ठीक उसी प्रकार जैसे 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाती थी।
इतिहासकारों के अनुसार 12 जनवरी 1863 में स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था जो की मकर संक्रांति की तिथि थी अर्थात 1863 से 2023 के बीच सूर्य की गति एवं अंग्रेजी कैलेंडर की गणना में दो से तीन दिन का परिवर्तन हुआ है इस प्रकार वर्षों से कन्या राशि संक्रांति 17 सितंबर को होती थी परंतु इस वर्ष कन्या की संक्रांति 18 सितंबर को होगी इसलिए सनातन परंपरा धर्मशास्त्र एवं ज्योतिषीय निर्णय के आधार पर हमें 18 सितंबर को ही भगवान विश्वकर्मा की पूजा करनी चाहिए।

कन्या राशि में सूर्य कब प्रवेश करेंगे

17 सितंबर 2023 रविवार को संपूर्ण रात्रि बीतने के बाद 5:10 सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश होगा। जिसका पुण्य काल 18 सितंबर 2023 सोमवार का दिन में रहेगा। अतः 18 सितंबर 2023 को भगवान विश्वकर्मा की पूजा आराधना करनी चाहिए।

कब है तीज एवं चतुर्थी चंद्र पूजन

स्त्रियों के अखंड सौभाग्य की कामना की पूर्ति करने वाला हरितालिका तीज व्रत 18 सितंबर को एवं चतुर्थी चंद्र पूजन चौरचन भी 18 सितंबर को ही होगा। 18 सितंबर सोमवार को प्रातः सूर्योदय के बाद 11 दंड 43 फल अर्थात दिन के 10:36 तक तृतीया तिथि रहेगी, अतः हरितालिका तीज व्रत भी सोमवार को होगा। चतुर्थी चंद्र पूजन चूंकि चतुर्थी तिथि में चंद्रमा के उदय होने पर चंद्र पूजन करने का शास्त्री विधान है।

चतुर्थी चंद्र पूजन चौरचन्दा पर्व में पूजन मुख्य रुप से किया जाता है और 18 सितंबर 2023 सोमवार के दिन 10:36 बाद सूर्यास्त के बाद तक चतुर्थी तिथि रहेगी यानि सोमवार को चतुर्थी तिथि में ही 5 बजकर 55 मिनट शाम के बाद चंद्रमा का उदय हुआ है इसलिए तीज चतुर्थी, चौरचंदा पावन चंद्र पूजन एवं विश्वकर्मा पूजा यह तीनों 18 सितंबर 2023 को ही होगा।

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